प्राणायाम

 

प्राणायाम

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यदि हम सांस लेना बंद कर दें तो :-

                                                                         शरीर में प्राण की कमी महसूस होगी बेचैनी उत्पन्न होगी और शरीर नीला, काला या भुरा पड़ जाएगा,यदि हम सांस को जबरदस्ती रोके रहे तो अंत में मृत्यु को प्राप्त होंगे। इसलिए मनीषियों एवं भारतीय चिंतन ने  हमेशा प्राण एवं ब्रह्मांड दोनों ही विषय पर अपनी खोज करना जारी रखा कि मनुष्य एवं ब्रह्मांड को चलाने वाली ऐसी कौन सी शक्ति है जो प्रत्येक कार्य करने की सामर्थ्य उसके अंदर जागृत करती है| यदि वह शक्ति उसमें विद्वमान हैं तो उसके जीवित होने का संकेत देती है और यदि नहीं होती तो उसका शरीर मृत मान लिया जाता है।
                    इन दोनों विषयों पर विशेष चिंतन करने के बाद एक शब्द उत्पन्न होता है, वह शब्द है “प्राण” – प्राण एक ऐसी शक्ति है जो मनुष्य एवं ब्रह्मांड दोनों का ही संचालन करती है |प्राण तत्व जब शरीर में विस्तृत होने लगता है तो उसको प्राणायाम की संज्ञा दी जाती है। प्राणायाम मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ शारीरिक उन्नति के लिए भी एक विशेष महत्व रखता है अन्न आदि के समान औषधियां भी प्रकृति की देन है अन्न देह पुष्टि के लिए उपयुक्त होता है ,औषधियां शरीर के दोषों और रोगों मुक्त होना के लिए प्रयुक्त होती है ।परंतु इन प्रचलित औषधियों से रोग निर्मल नहीं होते विशेषत पाश्चात्य औषधियों के सेवन से, इनसे  रोग कुछ काल के लिए तो दब जाते हैं किंतु इनमें समूल उन्मूलन नहीं होता पाता तथा रोग दोबारा  प्रकट हो  जाते  हैं | अतः तत्वदर्शी महर्षिओ  द्वारा स्वानुभूति के आधार पर  लोगों को निर्गुण करने एवं  स्वास्थ्य को स्थिर रखने वाले सफल साधन प्राणायाम को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया | मानव जीवन के आनंद साधनों में प्राण वायु की महत्व भूमिका है क्योंकि अन्य जलाधि के बिना कुछ काल तक जीवित रह जा सकता है परंतु प्राण वायु के बिना तो कुछ मिनट भी नहीं सकते।
 
प्राणायाम का सामान्य स्वरूप है सांस एवं प्रश्वास का एक कर्मक गति से प्रभावित रहना, बेहतर चलना, स्वाभाविक गति से नियमित रूप से विराम पूर्वक आना जाना। परंतु इस साधारण गति को नियमन और विस्तार के द्वारा असाधारण बनाकर,आयु को बढ़ाने का सर्वश्रेष्ठ उपाय प्राणायाम है ।
       
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 हम प्राणायाम शब्द पर प्रकाश डालें तो 

 दो शब्द प्रतीत होते हैं प्राण एवं आयाम इसका मतलब प्राण अर्थात ऊर्जा शक्ति सूक्ष्म ध्वनि तथा आयाम अर्थात विस्तारित होना, मनुष्य के शरीर में प्रत्येक क्रिया को पूरी करने की शक्ति जिस तत्व से आती है वही प्राणायाम है प्रणायाम वायु को अंदर लेने और बाहर निकालने की क्रिया मात्र ही नहीं अपितु यह वायु का शुद्ध वास्तविक एवं पवित्र अंश है जिससे प्रत्येक प्राणी  का जीवन निर्भर है| जिस तरह स्थूल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न प्रकार की साग सब्जियां फल इत्यादि का सेवन करते हैं तभी वह शरीर स्वस्थ रहता है इस प्रकार आत्मा एवं  शरीर को स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए जिस तत्व की आवश्यकता प्रकट करती है वह प्राण है जिसको शरीर में विस्तारित करने के बाद प्राण शब्द को प्राणायाम नाम की संज्ञा से सुरक्षित किया जा सकता है।
 
                   
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  इस प्रकार हम कह सकते हैं की। ” प्राणायाम “ प्राणवायु के विस्तार को कहते हैं । इसके अंतर्गत सांस के स्पंदलय को उत्तरोत्तर घटाने (पूरक एवं रेचक) तथा विलोमत : रेचक और पूरक श्वसन क्रिया के बीच के अंतर (कुंभक) का समय बढ़ते जाने का अभ्यास करना ही प्राणायाम कहलाता है।  अब प्राणायाम की तकनीकी बारीकियों की बात की जाए तो प्राणायाम भौतिक स्वसन- क्रिया के नियमन और नियंत्रण द्वारा किया जाता है श्वसन क्रिया के नियंत्रक के तीन चरण होते हैं।
1. पूरक – वायु को फेफड़ों में भरने की क्रिया ।
2. रेचक –उस वायु को फेफड़ों से बाहर निकालने की क्रिया। 
3. कुंभक – फेफड़ों के भीतर वायु को रोकना (आंतरिक कुंभक) या वायु रहित फेफड़े होने पर सांस रोकना ( बाह्य कुंभक) की क्रिया।
 
                        इस प्रकार हम यदि प्राणायाम शब्द की विवेचना करें तो प्राणायाम शब्द का अर्थ गति, कंपन ,गमन, प्रकृष्टता आदि के रूप में ग्रहण किया जाना है ।या दूसरे शब्दों में कहें कि प्राणों के आने जाने की प्रक्रिया पर यदि हम नियन्त्रण कर ले तो उसके द्वारा जीवन शक्ति को अत्यंत बढ़ाया जा सकता है ।हमारे ऋषि-मुनियों ने भी अलग-अलग शब्दों में इसकी इस को परिभाषित किया है।
 
        महर्षि पतंजलि के योग सूत्र   के साधन पाद में प्राणायाम को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि आसन के  सिद्ध  हो जाने पर स्वास एवं प्रश्वास की गति का विच्छेद करना प्राणायाम है। अंत स्वाभाविक रूप से निरंतर बिना प्रयास यह श्वसन क्रिया हो रही है। इस सामान्य श्वसन क्रिया को अपनी इच्छा अनुसार चलाना प्राणायाम के द्वारा ही संभव है।
                                                       
  हठ प्रदीपिका के अनुसार -प्राणवायु के चलने पर चित्त चलायमान होना है तथा उसके रुकने पर                                             रुक जाता है एवं एकाग्र हो जाता है।
  घेरण्य संहिता के अनुसार -मनुष्य को देवता बनाने की विद्या ही प्राणायाम है।
  मनुस्मृति के अनुसार– इंद्रिय दोषों का नाश करने वाला तप प्राणायाम है।
  गोरक्षनाथ के अनुसार– शरीर की नाड़ियों में प्रयास पूर्वक प्राण के प्रवाह को ले जाना एवं रोकना                                      ही प्राणायाम है।
गीता के अनुसार -अपान वायु में प्राण वायु का हवन, प्राण वायु में अपान वायु का हवन या प्राण व अपान की गति का निरोध करना प्राणायाम है।
स्वामी विवेकानंद के अनुसारशरीरस्थ जीवनी शक्ति को वश में लाना ही प्राणायाम कहलाता है।
श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसारप्राणायाम का मतलब है प्राण शक्ति का परिशोधन व अभिवदध्र्न। दूसरे शब्दों में प्राणशक्ति के अनावश्यक क्षरण को रोकने एवं क्षरण से हुई क्षति की पूर्ति करते रहना तथा प्राण तत्व की अधिक मात्रा को आकर्षित कर अपना व्यक्तित्व अधिकाधिक समुन्नत कर प्राणवान , तथा परिष्कृत  बनाए जाने की समग्र साधना की पद्धति को प्राणायाम कहते हैं ।                                                           
                                                    इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मानव के लिए प्राणायाम अमूल्य धरोहर है। जिसका उपयोग करके वह जीवन को भली प्रकार से जी सकता है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसकी उपयोगिता विभिन्न शोधों के माध्यम से सिद्ध हो रही है। शारीरिक, मानसिक,आध्यात्मिक उन्नति, प्राणायाम के लिए निरंतर अभ्यास से प्राप्त की जा सकती है। निसंदेह प्राणायाम ऋषियों  की अनुपम देन है।
 
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