प्राकृतिक चिकित्सा \ NaturopathY
प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी / naturopathy:-
प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ का आधार है – ‘रोगाणुओं से लड़ने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति’।
प्राकृतिक चिकित्सा में अनेक पद्धतियां हैं जैसे – जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा आदि। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलन में विश्व की कई चिकित्सा पद्धतियों का योगदान है।
प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक सम्पूर्ण क्रांति है। इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन, विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हलकी पकी सब्जियाँ विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों एवं गरीब देशों के लिये विशेष रूप से वरदान हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा के मूलभूत सिद्धान्त:-
प्राकृतिक चिकित्सा के निम्नलिखित दस मुख्य सिद्धांत हैं।
1. सभी रोग, उनके कारण एवं उनकी चिकित्सा एक है। चोट-चपेट और वातावरण जन्य परिस्थितियों को छोड़कर सभी रोगों का मूल कारण एक ही है और इनका इलाज भी एक है। शरीर में विजातीय पदार्थो के संग्रह से रोग उत्पन्न होते है और शरीर से उनका निष्कासन ही चिकित्सा है।
2. रोग का मुख्य कारण जीवाणु नही है। जीवाणु शरीर में जीवनी शक्ति के होने आदि के कारण विजातीय पदार्थो के जमाव के पश्चात् आक्रमण कर देते है जब शरीर में उनके रहने और पनपने लायक अनुकूल वातावरण तैयार हो जाता है। अतः मूल कारण विजातीय पदार्थ है, जीवाणु नहीं। जीवाणु द्वितीय कारण है।
3. तीव्र रोग चूंकि शरीर के स्व-उपचारात्मक प्रयास है अतः ये हमारे शत्रु नही मित्र है। जीर्ण रोग तीव्र रोगों के गलत उपचार और दमन कें फलस्वरूप पैदा होते है।
4. प्रकृति स्वयं सबसे बडी चिकित्सक है। शरीर में स्वयं को रोगों से बचाने व अस्वस्थ हो जाने पर पुनः स्वास्थ्य प्राप्त करने की क्षमता विद्यमान है।
5. प्राकृतिक चिकित्सा में चिकित्सा रोग की नहीं बल्कि रोगी की होती है।
6. प्राकृतिक चिकित्सा में रोग निदान सरलता से संभव है। किसी आडम्बर की आवश्यकता नहीं पड़ती। उपचार से पूर्व रोगों के निदान के लिए लम्बा इन्तजार भी नहीं करना पड़ता।
7. जीर्ण रोग से ग्रस्त रोगियों का भी प्राकृतिक चिकित्सा में सफलतापूर्वक तथा अपेक्षाकृत कम अवधि में इलाज होता है।
8. प्राकृतिक चिकित्सा से दबे रोग भी उभर कर ठीक हो जाते है।
9. प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा शारिरिक, मानसिक, सामाजिक (नैतिक) एवं आध्यात्मिक चारों पक्षों की चिकित्सा एक साथ की जाती है।
10 विशिष्ट अवस्थाओं का इलाज करने के स्थान पर प्राकृतिक चिकित्सा पूरे शरीर की चिकित्सा एक साथ करती है |प्राकृतिक चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग नहीं होता। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार ‘आहार ही औषधि’ है गांधी जी के अनुसार ‘राम नाम’ सबसे बडी प्राकृतिक चिकित्सा है अर्थात् अपनी आस्था के अनुसार प्रार्थना करना चिकित्सा का एक आवश्यक अंग है।
व्यवहार में प्राकृतिक चिकित्सा:-
प्राकृतिक चिकित्सा एक होलिस्टिक, यानी समग्र, उपाय प्रणाली है जो यातायात, पोषण, व्यायाम, प्राकृतिक जीवन शैली और सकारात्मक मानसिक आचरण को बढ़ावा देने के लिए काम करती है। यह चिकित्सा व्यक्ति के पूरे शरीर को बजाय एकल बीमारी का ध्यान देती है।
नीचे प्राकृतिक चिकित्सा के और भी अनेक पहलू है।
जोकि निम्नलिखित हैं, जिनका पालन करने से मनुष्य आजीवन आरोग्य बना रहता है।
1. **प्राकृतिक शक्ति का सम्मान करना**:
2. ** कोई हानि न करें**:
इस सिद्धांत के तहत, चिकित्सा का उद्देश्य किसी भी प्रकार के नकारात्मक प्रभावों को कम करना है।
3. **कारण का पता लगाना**:
इसके बजाय कि केवल लक्षणों को दूर करने का प्रयास करें, प्राकृतिक चिकित्सा बीमारी के मूल कारण का पता लगाने का प्रयास करती है|
4. **पूरी व्यक्ति की देखभाल**:
5. **रोग की रोकथाम और स्वास्थ्य सुधार**:
6. **शिक्षा**:
7. **स्वास्थ्य स्थिति का आत्म-निरीक्षण**:
8. **पूरक और सहायक उपचार**:
प्राकृतिक चिकित्सा अन्य चिकित्सा प्रक्रियाओं के साथ काम करने का प्रयास करती है, जैसे की एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेदा आदि।
9. **व्यक्तिगत और विशेष उपचार**:
हर व्यक्ति की अपनी अद्वितीय आवश्यकताएं और परिस्थितियां होती हैं, इसलिए उपचार उनके अनुसार कस्टमाइज़ किए जाते हैं।
10. **सकारात्मक सोच**:
प्राकृतिक चिकित्सा सकारात्मक सोच का महत्व समझती है और इसे उत्तेजित करती है ।
प्राकृतिक चिकित्सा के मूल सिद्धांत सभी रोगों का मूल कारण विजातीय विष माना गया है। यह प्राकृतिक चिकित्सा का मूल सिद्धांत भी रहा है कि सभी रोग एक हैं उनका कारण विजातीय विष का शरीर में एकत्र होना है तथा सभी प्रकार का उपचार शरीर में स्थित इस विजातीय विष को बाहर निकालना है। यह विष शरीर में रहकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करता है जिसमें शरीर के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है जबकि इन विजातीय तत्वों को बाहर निकालना ही सभी रोगों का उपचार है अर्थात इसको बाहर निकालते ही शरीर के सभी कार्य एवं क्रियाएं समान रूप से ठीक हो जाती है तथा शरीर स्वस्थ हो जाता है ।
सभी रोग एक उनका कारण एक तथा उनका उपचार भी एक ही है ।इस पद्धति में सभी प्रकार की दवाइयों का प्रयोग वर्जित किया गया है क्योंकि दवाइयों का कार्य रोग को दबाना होता है जबकि यहां पर रोग को दबानेके स्थान पर उसे शरीर से निकालने पर बल दिया जाता है। याद रहे कि जो रोग जल्दी आते हैं और जल्दी जाते हैं ( तीव्र रोग) जैसे नजला, जुकाम, बुखार ,खांसी एवं दस्त ,यह सब तीव्र रोग है जो शरीर की सफाई करते हैं ।अतः यह हमारे लिए लाभदायक होते हैं। रोगों का मूल कारण कीटाणु और जीवाणु न होकर विजातीय विष (गंदगी) होती हैं क्योंकि इन पर ही यह कीटाणु जीवित रह सकते हैं। शरीर अपनी चिकित्सा स्वयं करता है तथा शरीर में रोग आने पर चिकित्सा रोग विशेष की ना हो करते हुए पूरे शरीर की चिकित्सा करने में संपूर्ण शरीर स्वस्थ हो जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा में रोग की जांच पर विशेष बल नहीं दिया जाता क्योंकि रोगी व्यक्ति के शरीर में विजातीय विषयों की उपस्थिति निश्चित है। इसमें किसी जांच की आवश्यकता ही नहीं है परंतु जीर्ण रोग (जिनमें शरीर में अत्यधिक मात्रा में विजातीय तत्व भरे होते हैं) को ठीक होने में कुछ अधिक समय लगता है। साथ ही साथ चिकित्सा काल में यह रोग कुछ उभार भी आते हैं जिससे शरीर में स्थित पुरानी गंदगी बाहर निकलती हैं । जबकि दूसरी चिकित्सा पद्धतियां जहां केवल शरीर को मुख्य मानते हुए केवल शरीर की चिकित्सा को अपना उद्देश्य मानती हैं वही प्राकृतिक चिकित्सा शरीर के साथ-साथ मन और आत्मा को भी ध्यान में रखते हुए शरीर, मन और आत्मा इन तीनों की चिकित्सा एक साथ करने के निर्देश देती है।
आगे की पोस्टों पर हम प्रकाश डालेंगे कि वैकल्पिक चिकित्सा कितने प्रकार की होती है तथा उनसे किस प्रकार प्राकृतिक रूप से रहते हुए भी लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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