पंच तत्व
” छिती जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व रचित अधम सरीरा अर्थात
” धरती , जल ,अगनी ,वायु और आकाश से हमारा [ भौतिक ] शरीर बना है |
1.आकाश तत्व :-
आकाश तत्व खाली स्थान और अंतरिक्ष का प्रतीक है। यह हमारे शरीर में होने वाले विकासऔर विस्तार की क्षमता को प्रभावित करता है, और अन्य तत्वों को उनके कार्य करने के लिए जगह प्रदान करता है।
यदि आकाश तत्व का सृजन ना हुआ होता तो न तो हम सांस ले सकते न हमारी स्थिति और अस्तित्व होता। शेष चार तत्वों का आधार भी यही है। आकाश तत्व ब्रह्मांड का भी आधार है। उपवास इस तत्व की प्राप्ति का एक साधन है ।वैसे भी प्रतिदिन भूख से कम खाना स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है, बीमार पड़ने पर उपवास द्वारा ही शरीर की जीवन शक्ति को पूरा करते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप हम स्वस्थ हो जाते हैं। शोक, मोह ,काम, क्रोध, भय, यह सभी आकाश तत्व के कार्य हैं। शरीर में आकाश तत्व के विशेष स्थान सिर, कंठ ,हृदय ,उदर और कटी प्रदेश है। मस्तिष्क में स्थित आकाश, वायु का भाग है जो प्राण का मुख्य स्थान है इससे अन्य का पाचन होता है। उदर प्रदेश अकाश जल का भाग है इसमें सब प्रकार के मल विसर्जन की क्रिया संभव हो पाती है ।कटी प्रदेश, आकाश और पृथ्वी तत्व का भाग है ।यह अधिक स्थुल होता है तथा गंद का आश्रय है ।आकाश जैसे हमारे आसपास और ऊपर नीचे है वैसे ही हमारे भीतर भी है। त्वचा के एक छिद्र में तथा 2 छिद्रों के बीच जो जगह है वही आकाश है । इस आकाश की खाली जगह को हमें भरने की कोशिश नहीं करनी चाहिए ।यदि हम अपने दैनिक आहार जितना चाहिए उतना ही लें और भूख से अधिक ना खाएं तो शरीर स्वस्थ रहेगा, इसलिए सप्ताह में 1 दिन उपवास करना चाहिए पूरा उपवास ना कर पाए तो एक या अधिक समय का भोजन त्याग दें इससे भी लाभ मिलेगा। हमारे जीवन शक्ति कि वृद्धि के लिए आकाश तत्व की प्राप्ति उपवास के अतिरिक्त ब्रह्मचर्य ,संयम ,सदाचार मानसिक अनुशासन एवं संतुलन, विश्राम अथवा शिथिलीकरण है प्रसंनता, मनोरंजन तथा गहरी नींद भी इससे प्राप्त होती है।
2. वायु तत्व :-
3. जल तत्व:-
जल तत्व हमारे शरीर के तरल पदार्थ, जैसे कि रक्त, लिंफ, पेशाब आदि, को नियंत्रित करता है। यह शरीर के तापमान को संतुलित करता है और पोषण को यथास्थान पहुंचाता है।
जल भी और तत्वों के समान ही हमारे जीवन में अति महत्वपूर्ण है। जल को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे नीर,वारि, अमृत रस, पेय, पानी तथा जल, जो कि प्राणियों के जीवन का आधार है। जल जीवन के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सांस लेने के लिए वायु ।सांसारिक जीवन का आरंभ जल से ही माना जाता है जल के द्वारा ही पालन पोषण संभव हो पाता है। जल में सभी पदार्थों को अपने में घोलने के गुण के कारण अन्य शेष तत्वों से भिन्न है।
जल में अन्य भौतिक पदार्थों के सहयोग से कसैला, मीठा ,तीखा, कड़वा, खट्टा, नमकीन, तथा गदला आदि होने का गुण है। जल के द्वारा अग्नि को नियंत्रित किया जा सकता है। जोकि रोगो के उपचार में बहुत ही सहायक सिद्ध होता है ।हमारे शरीर में 70% भाग केवल जल है। प्राणियों को रोगमुक्त करने का औषधि जल ही है। जल के द्वारा रोगों को दूर किया जा सकता है ।जल केवल प्राण रक्षा के लिए ही प्रयोग में नहीं आता वरन हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जल के द्वारा शरीर ही नहीं वरन किसी भी पदार्थ को स्वच्छ किया जा सकता है ।जल तीन प्रकार का होता है मृदु जल जोकि स्वास्थ्य के लिए अहित कारक होता है तथा बहती दरिया या वर्षा के जल से प्राप्त होता है। प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा जल को प्रयोग कर जल तत्व को नियंत्रित कर रोग का उपचार किया जाता है । कठोर जल जो स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम होता है पीने में प्रयोग किया जाता है इसे गहरे कुएं एवं नलों का पानी आदि से प्राप्त किया जाता है। तीसरा है स्थाई कठोर जल जोकि स्वास्थ्य के लिए कम हितकर होता है जैसे वर्षा का संग्रहित जल भूमि पर एकत्र जल या जल को उबालकर उस की कठोरता दूर कर तैयार मृदु जल आदि।
4. अग्नि तत्व:-
5. प्रथ्वी तत्व :-
पृथ्वी तत्व स्थिरता, ठोसपन, और पदार्थता का प्रतीक होता है। यह हमारे शरीर के ठोस भाग, जैसे कि हड्डियाँ, दांत, नाखून आदि को बनाने में सहायक होता है। पृथ्वी तत्व अन्य चार तत्व आकाश, वायु ,अग्नि, जल का रस है तथा यह सभी में प्रधान तत्व है ।पृथ्वी में सभी चेतन व अचेतन वस्तुओं को धारण कर सकने के गुण विद्यमान हैं। पृथ्वी के गर्भ से कई रत्नों ,खनिजों, खाद्य पदार्थों, औषधियों ,जड़ी बूटियों ,शुद्ध जल, वनस्पति आदि को प्राप्त किया जाना ही निश्चित हो पाता है। पृथ्वी के द्वारा ही प्राप्त खाद्य पदार्थों को पाकर हम अपना पालन पोषण कर के स्वस्थ बनते हैं। पृथ्वी से हमें कई प्रकार के अमूल्य रत्न और औषधियां प्राप्त होती हैं, पृथ्वी से ही संपूर्ण प्राणी जगत को अन्न प्राप्त हो पाता है ।मिट्टी पूरी पृथ्वी पर आसानी से पाऐ जाने वाला तत्व है ।मिट्टी को प्राप्त करना बहुत ही आसान व सुलभ है ।मिट्टी के द्वारा पृथ्वी तत्व की पूर्ति कर रोगों की चिकित्सा की जाती है । मिट्टी जितनी सर्व सुलभ है, उतनी ही वह महान गुणों से परिपूर्ण भी है । मिट्टी जितना जितनी सरलता से पाई जाती है उतनी हीअपने महान गुणों के कारण बहुमूल्य बन गई है ।
मिट्टी में ताप संतुलन के गुण के कारण सर्दी व गर्मी दोनों को सोखने का गुण है जो कि गर्मी को सोख कर ठंडक और ठंडक को सौंख कर गर्मी प्रदान करती है। जिससे रोग चिकित्सा में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान प्रदान होता है ।मिट्टी के निरंतर प्रयोग से शरीर के भीतर जमे मैल भी ढीले होकर नीचे चले जाते हैं। विष को खींचकर बाहर निकालने का गुण भी मिट्टी में ही विद्यमान है ।सांप, बिच्छू मधुमक्खी ,पागल कुत्ते के काटने तथा औषधियों के विष को दूर मिट्टी के द्वारा ही किया जा सकता है। मिट्टी में ही सभी प्राणियों के जीवन निर्वाह के लिए खाद्य पदार्थों का उनसे विभिन्न रसों की प्रधानता के साथ उत्पन्न करने की शक्ति होती है।
मिट्टी की विद्युत शक्ति से सारे रोग सरलता और स्थाई रूप से मिट जाते हैं। मिट्टी के द्वारा कीटाणुओं का नाश किया जा सकता है, मिट्टी में धारण गुण के कारण वह कुडा कचरा, और अपशिष्ट पदार्थों को धारण कर उनकी स्वच्छता को बनाए रख सकती है। मिट्टी में विभिन्न जल स्रोतों से स्वच्छ कर जल को शुद्ध करने का गुण भी है। इस प्रकार विभिन्न गुणों से सुसज्जित होकर मिट्टी संसार की सबसे बड़ी और सस्ती औषधि है।