1.कब्ज:-
कब्ज को आधुनिक सभ्यता का प्रतिष्ठित रोग कहा जा सकता है। मानव शरीर में अधिकतर रोगों को उत्पन्न करने में कोष्ठबद्धता (कब्ज) की महत्वपूर्ण भूमिका है इसलिए कब्ज को रोगों की जननी कहां गया है। हम जो कुछ भी खाते है उसी भोजन के उपयोगी अंश से रस की उत्पत्ति होती है तथा अनुपयोगी अंश से मल की उत्पत्ति होती है। मनुष्य जो भी खाता है उसका अमाशय एवं ऑतो द्वारा पाचन एवं अवशोषण होता है तथा शेष अनुपयोगी अंश मल के रूप में स्वत बाहर निकाल जाता है। जब यह माल सुचारू रूप से बाहर नहीं निकल पाता है उसी अवस्था को कब्ज या कोष्ठबद्धता कहा जाता है।
2.कारण:- कब्ज हमारी गलत आहार विहार के कारण होता है। कब्ज होने के कुछ अन्य कारण निम्न प्रकार हैं।
- अत्यधिक रुखा एवं बासी भोजन करने से कब्ज हो जाता है।
- चोकर रहित अति महीन आटा बिना छिलके की दाल तथा रेशे रहित आहार का अधिक सेवन भी कब्ज का एक कारण है।
- अत्यधिक गरिष्ठ एवं मिर्च मसाले व तली भूनी चीजों का अत्यधिक सेवन करना।
- अत्यधिक व्यवस्तता के कारण या शर्म या संकोच के कारण मलो उत्सर्जन होने से रोके रखने की आदत भी इसके लिए उत्तरदायी है।
- भोजन का समय निश्चित नहीं होना भी कब्ज का एक कारण है।
- मल मार्ग में होने वाले रोगों के कारण जैसे बवासीर भगंदर आदि।
- भोजन को चबा चबाकर नहीं खाना, बार-बार भोजन की आदत एवं भोजन में शाक सब्जियों का अभाव।
- शरीर में पानी की कमी अथवा लंबी बीमारी के कारण शारीरिक शक्ति की कमी जिससे शरीर के अन्य अंग अवयव सही से कार्य नहीं कर पाते हैं।
- बीमारी के कारण अधिक औषधि सेवन का तथा लीवर आदि के ठीक से कार्य नहीं कर पाने के कारण भी कब्ज रोग होता है।
3.लक्षण:- कब्ज होने पर अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों की उत्पत्ति होने लगती है।
*शोच में कठिनाई होती है। रोगी के पेट में हर समय भारीपन रहता है।
*कब्ज की रोगियों के मुख से अक्सर दुर्गंध आती रहती है जीभ पर सफेद परत भी जमी रहती है।
*मल की जमे रहने से मल मार्ग द्वारा दुर्गंधयुक्त वायु निकलती रहती है।
* आंतों में अन्न की सडन से रोगी के सिर दर्द ,चक्करआना, मानसिक तनाव, व मितली एवं शिथिलता के लक्षण उत्पन्नहोते हैं।
* कब्ज के रोगियों में अगणिमांघ, अरुचि, अफरा आदि लक्षण भी देखने को मिलते हैं।
* अधिक दिनों तक कब्ज रहनेसे अर्श ( बवासीर) की उत्पत्ति हो सकती है।
* गैस बनने लगती है , पेट गैस बनने पर सरदर्द तथा यह गैस हृदय को प्रभावित कर घबराहट को जन्म देती है।
* सुबह सोकर उठने के बाद भी थकान होना और कई त्वचा संबंधित समस्याएं उत्पन्न होजाती हैं।
4.कब्ज के प्रकार :- कब्ज को तीन भागों में विभाजित किया है-
1 यांत्रिक या कायिक कब्ज।
-गर्भाशय, अमाशय या ऑतो के विभिन्न रोग ट्यूमर, अल्सर, सूजन ,घाव,फिशर रकतर्भ कारणों से उत्पन्न कब्ज यांत्रिक या कायिक कहलाता है।
2. क्रियात्मक कब्ज ।
मानसिक संवेगों, इसनयुविक कमजोरी, अनंतस्रावी ग्रंथियां में विकार, मल के वेग को रोकना, औषधिजन एवं आहार विषकत्ता , कम पानी पीना , श्रम का अभाव, धूम्रपान, बिना चबाये भोजन करना, भोजन में फाइबर की कमी, मैदा, बेसन आदि से बने पदार्थ का अधिक से अधिक मात्रा से आंतों के स्वाभाविक कार्य में रुकावट आ जाती हैं जिससे क्रियात्मक कब्ज हो जाता है।
3.जन्मजात कब्ज ।
बचपन से ही हाथों की संरचनात्मक विकृति के कारण जन्मजात कब्ज होता है।
5.वैकल्पिक चिकित्सा :-
1. आहार चिकित्सा .
* कब्ज को समाप्त करने वाले फलों में नाशपाती, आवाला, अमरुद, टमाटर ,मुनक्का, खजूर, शहतूत, पपीता, चीकू ,अनार, किशमिश ,खुबानी तथा अंजीर लाभप्रद है।
* सब्जियां के अतिरिक्त अंकुरित गेहूं, मूंग, मटर, चना, मसूर, सोयाबीन, छाछ. दूध चोकर समेत आटे की रोटी अंकुरितगेहूं का दलिया एवं आटे की रोटी, काजू बादाम, अखरोट, मूंगफली आदि का प्रयोग करें।
* इनके अतिरिक्त फलों में सेब, शरीफा , खरबूजा ,तरबूज, जामुन, मौसमी तथा संतरे की फांक निकाल कर रेशे साहित आदि तथा मौसम अनुसार मिलने वाले फल खाने से कब्ज दूर होता है।
* सब्जियों में पालक, चोलाई , बथुआ आदि पत्ते वाली सब्जी ,लौकी ,टिंडा, चुकंदर, तोरई , गाजर, खीरा, प्याज, लहसुन, आलू, पत्ता गभी, यह सभी प्राय कब्ज में लाभकारी हैं।
* अधिक भोजन, गलत चीजे , तले भुने फास्ट एवं जंग फूड परियोजित कन्फेक्शनरी एवं गरिष्ठ आहार बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
2.आयुर्वेदिक अथवा जड़ी बूटी चिकित्सा .
* इसबगोल दो चम्मच दूध से या दही के साथ ले।
* एरण्य तेल दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है।
* मुनक्का कब्ज होने की दशा में 7 या 11 दाने दूध में पकाकर लिए जा सकते हैं।
* पंचसकार चूर्ण एक चम्मच गर्म पानी में सेवन रात्रि सोने से पहले करना चाहिए।
*चोकर साहित आटे की रोटियां कब्ज में लाभकारी होती है।
* भोजन से एक घंटा पहले अमरूद में नींबू, नमक, काली मिर्च डालकर खाना अत्यंत लाभकारी होता है।
*प्रात काल 5:00 बजे उठकर ताम्रपात के जल को पीना चाहिए जिसे रात्रि में ही रख लेना चाहिए।
*दोपहर के भोजन में मट्ठे का सेवन करना चाहिए मट्ठे में सेंधा नमक, भुनी हुई हींग एवं जीरा देना हितकर होता है।
*मलअवरोध में प्रातः काल खाली पेट दो सेब खाने चाहिए तथा भोजन करने के 2 घंटे पश्चात इच्छा अनुसार पानी पी सकते हैं पानी को सहदेव घुट घुट पीकर उसका स्वाद महसूस करते हुए पीना चाहिए।
*एलोवेरा जूस में फाइबर, एंजाइम्स और एंटीऑक्सिडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं, जो पाचन प्रक्रिया को सुधारते हैं. इसके अलावा यह लैक्सेटिव की तरह असर करता है जिससे कब्ज के मरीजों को शौच के दौरान ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़ता है. तीन से चार छोटी चम्मच एलोवेरा जूस में उतनी ही मात्रा में पानी मिलाएं और सुबह खाली पेट इसका सेवन करें.।
*कब्ज दूर करने के लिए रोजाना एक गिलास नारियल पानी पिएं. इसे पीने से शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं साथ ही पाचन तंत्र भी मजबूत होता है।
*दिन में सोने से बचें, आयुर्वेद के अनुसार कुछ ऋतुओं में दिन में सोने से परहेज करना चाहिए, खासतौर पर वर्षा ऋतु में। इस ऋतु में सोने से पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और कब्ज की समस्या बढ़ सकती है.
*सुबह गर्म पानी पिएं, सुबह उठकर शौच जाने से पहले एक गिलास गर्म पानी पिएं. ऐसा नियमित रूप से करने से पेट अच्छे से साफ होता है और कब्ज की समस्या कम होने लगती है।
3. प्राण चिकित्सा .
कब्ज रोग में नाभि चक्र, सौरजालिका चक्र और मूलाधार चक्र की जांच करनी चाहिए।
नाभि चक्र और संपूर्ण पेट तथा हल्की स्पर्श से मालिश भी करनी चाहिए। तथा नाभि चक्र की स्थानीय झाड़ बुहार के बाद उसे और अर्जित करें।
- यही प्रक्रिया सौर जालीका चक्र के लिए करें, सर्वप्रथम अग्र सोर, जालिका चक्र की स्थानीय सफाई करें, स्थानीय झाड़ बुहार के बाद उसे अर्जित करें।
- प्रक्षेपित प्राण ऊर्जा के स्थिर होने की कल्पना करें।
- यही प्रक्रिया मूलाधार चक्र के लिए करें सर्वप्रथम मूलाधार चक्र की स्थानीय सफाई करें स्थानीय झाड बुहार के बाद उसे अर्जित करें।
- इस उपचार को रोगी को अवश्य अनुसार देना चाहिए यदि कब्ज सामान्य स्थिति में है तो सप्ताह में दो-तीन बार इस उपचार से ही लाभ मिलता है।
4. प्राकार्तिक चिकित्सा .
मिट्टी तत्व चिकित्सा :- कब्ज की रोगी को सर्वप्रथम प्रातः काल खाली पेट आधे घंटे मिट्टी की पट्टी पेंदु पर रखनी चाहिए।
भोजन के चार-पांच घंटे बाद मध्यकाल में मिट्टी की पट्टी प्रतिदिन रखनी चाहिए।
जल तत्व चिकत्सा:– प्रातः काल सोकर उठते ही सूर्य उदय से पहले सायकल मे रक्खा तामपत्र रखा शुद्ध जल पीना चाहिए।
लगभग आधा किलो या जितना आसानी से पिया जा सके जल पीना चाहिए। उस के थोड़ी देर सो जाना कब्ज को आसानी से ठीक कर सकता है।
एनिमा :- प्रातः काल गुनगुने पानी का एनिमा जिसमें दो-तीन बंदे कागजी नींबू का रस मिला हो पेट साफ कर लेना चाहिए।
आधे गिलास ठंडा पानी में एक कागजी नींबू का रस मिलाकर पेट साफकरने के लिए दिन में 4-6 बार तक पीना चाहिए। इस प्रयोग का, जब भी पेट भारी हो करना चाहिए।
अग्नि तत्व अथवा रंग चिकित्सा:- नारंगी तथा पीली बोतल में बनाया हुआ सूर्य तत्व जल 50 ग्राम दिन में तीन बार पीना, यह कब्ज के लिए अत्यंत लाभकारी है।
वायु तत्व चकित्सा:- प्रतिदिन यदि सूर्य नमस्कार की कसरत विधिपूर्वक करने से कब्ज बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।
प्रतिदिन प्रात काल उठते ही 10 -15 मिनट की सूखी मालिश पेट पर करने से अत्यंत लाभ होता है।
नाभि के चारों ओर हथेलियां से मर्दन करने और हाथों को दाहिनी ओर से बाई और मालिश करने पर रोगी को आराम मिलता है।
प्रतिदिन नियमित रूप से प्रातः काल सूर्यउदय से पहले भ्रमण करना चाहिए। इससे रोगी को आराम मिलता है तथा कब्ज धीरे-धीरे ठीक होने लगता है
आकाश तत्व चिकित्सा:- सप्ताह में एक दिन उपवास रखने का नियम बना ले।केवल कागजी नींबूका रस का का जल पीकर सप्ताह में एक बार उपवास करना चाहिए।
प्रार्थना:- हर दिन कुछ मिनट प्रार्थना करने से भी हारमोंस एवं एंजाइम्स संतुलित होते हैं।हमारे अंदर की नकारात्मकता दूर होती है क्योंकि नकारात्मकता के कारण ही कब्ज उत्पन्न होताहै।
5. यौगिक चिकित्सा .
कब्ज की चिकित्सा उचित आहार बिहार वह योग की क्रियो के अभ्यास के द्वारा की जा सकती है। क्रियोओ में निम्न अभ्यास कब्ज से मुक्ति दिला सकते हैं।
षट कर्म:- अग्निसार क्रिया, बस्ती कर्म एवं नौली का अभ्यास।
आवश्यकताअनुसार 15 दिन में एक बार लघु शंख प्रक्षालन भी किया जा सकताहै । शंख प्रक्षालन उचित मार्गदर्शन अथवा विशेषज्ञ की मार्गदर्शन में ही करें।
आसन:- पवनमुक्तासन, त्रिकोणासन, ताड़ासन, कटीचक्रासन , त्रियांक भुजंगासन, मसतस्य आसान अर्ध मस्त्येंद्रासन, हलासान आदि आसान कब्जा रोगों के लिए अति उत्तम है। कब्ज के रोगी को भोजन के के बाद 10 मिनट के लिए ब्रज आसन में बैठना चाहिए।
सूर्य नमस्कार:- सूर्यानमस्कार का प्रति दिन सूर्य उदय के समय 12 आवर्तियों तक अभ्यास करना चाहिए।
प्राणायाम:- भास्त्रीका, सूर्यभेदी प्राणायाम , एवं नाड़ी शोधन प्राणायाम का प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए।
मुद्रा एवं बंद:- कब्ज की रोगियोंके लिए योग मुद्रा, अश्वनी मुद्रा एवं बंधों में उडियन बंध और महबंध का अभ्यास करना चाहिए।
ध्यान:– कब्ज के रोगियों को ध्यान के माध्यम से अन्तःमौन का अभ्यास करना चाहिए।
6.चुंबक चिकित्सा.
रोगी को निम्न प्रकार से चुंबक चिपक चिकित्सा दी जा सकती है.
पुराने कब्ज हेतु तलवों के नीचे शक्तिशाली चुंबकों का प्रयोग 10-10 मिनट तक दिन में दो बार करने से लाभ मिलता है।
नाभि पर एवं नाभि के बाई और एक से एक्यूप्रेशर बिंदु पर उत्तरी ध्रुव का चुंबक रखना चाहिए।
दिन में तीन-चार बार चुंबकीय जल का सेवन करने से लाभ मिलता है। चुंबकीय जल एक बार में 50-75 मि.ली. की निश्चित मात्रा में लेना चाहिए
7. विशेष. * प्रातः काल खाली पेट अथवा पपीता खाकर ऊपर से एक गिलास दूध पीने से कब्ज दूर होता है।
* नींबू पानी पर रहने से पेट को पूर्ण विश्राम मिलता है। उपवास काल में शरीर तथा तन को भी विश्राम देने के लिए पूर्ण मोन रखें। तीन दिन बाद, तीन दिन तक, तीन-तीन घंटे में अंतराल से फल और सब्जी का रस मौसम अनुसार 300 मिलीग्राम के हिसाब से ले ।
*”हितभुक, मितभूक, ऋतुभूक “ अर्थात जीने के लिए हितकर भोजन खाओ, भूख से थोड़ा कम खाओ,नेकी और हक की कमाई का खाओ, क्योंकि जैसा खाए अंन वैसा ही होगा मन , मत भूलो कि हम खाने कलिए नहीं खाते हैं।
तीन सूत्रों के पालन से तन मन की शुद्ध होकर सहज ही रोग मुक्ति और स्वास्थ्य प्राप्त की का लाभ मिल सकता है अंग्रेजी में कहावत भी है। diet cures more then Doctors .
अजीर्ण
जिसे अपचन ,मंदाग्नि तथा अग्निमाघ भी कहते हैं। अपच होने पर शरीर और पेट भारी रहता है। कभी-कभी दस्त और कभी-कभी कब्ज की भी शिकायत हो जाती है। और कभी बदहजमी के कारण दस्त भी हो जाते हैं। भोजन के बाद जी मचलाता है, खट्टी डकारी, कभी-कभी उलटी भी हो जाती है।अर्थात शरीर में मल का अवरोध या दस्तों का अधिक होना अजीर्ण के सामान्य लक्षण है।
1.कारण
अजीर्ण रोग के कारणों को दो भागों में बाटा जा सकता है ।
1 .दैहिक कारण।
*भोजन समय पर नहीं करना।
* बहुत अधिक जल पीना ।
* स्वाद के वशीभीत होकर बार-बार खाना।
* दिन में सोना।
* मल मूत्र आदि बेग को रोकना । और रात्रि में जागरण करना।
2. मानसिक कारण।
* जो व्यक्ति अधिक भय ग्रस्त रहते हैं उन्हें भी यह रोग हो जाता है।
* जो व्यक्ति दूसरों से ईर्ष्या रखते हैं उन्हें भी यह रोग हो जाता है।
* लोभी,शोक, दीनता, आदि कारण रोग को बढ़ाने वाले और रोग को उत्पन्न करने के प्रमुख मानसिक कारण है।
2.लक्षण.
* खट्टी डकार आना।
* भोजन का ठीक से न पचना।
* शरीर और पेट में भारीपन।
* पेट का फूलना,सीने में भारीपन एवं घबराहट, मल न होना या पतला होना, मल का बिना पचे निकल जाना।
3.वैकल्पिक चिकित्सा
1.घरेलू चिकित्सा।
- छाछ का सेवन करें, छाछ खाने को पचाने में मदद करता है। …
- नींबू पानी पिएं .. यथा संभव छांछ का प्रयोग करें।
- प्याज काट कर नींबू निचोड़ कर भोजन के साथ खाने से लाभ होता है।
- बथुआ उबालकर एक कप सूप पीना अत्यंत लाभकारी होता है।
- पत्ता गभी या फूलगोभी का रस तथा जल सम मात्रा में मिलाकर 40 मिली लीटर लेने से लाभ मिलता है।
- छाछ में सेंधा नमक , भुना जीरा, सौंफ, काली मिर्च पीसकर मिलाकर पीने से प्राय हर प्रकार के अजीर्ण में लाभ होता है।
- नीबू काटकर उस पर काली मिर्च तथा नामक लगाकर गर्म कर चूसने से लाभ मिलता है ।
4.आयुर्वेदिक चिकित्सा
* ईसबगोल दो चम्म रात्रि मे दूध से या दही के साथ ले।
*अरण्य तेल एक चम्मच दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है।
* मुनक्का कब्ज होने की दशा में 7 या 11 दाने दूध में पकाकर लिए जा सकते हैं।
* पंच साकार चूरण , एक चम्मच गर्म पानी का सेवन रात्रि सोने से पहले करना चाहिए।
* चोकर युक्तआटे की रोटियां कब्ज में लाभकारी होती है।
*भोजन से एक घंटा पहले अमरूद में नींबू नमक काली मिर्च डाल कर खाना अत्यंत लाभकारी होता है।
*प्रात काल 5:00 बजे उठकर तमपत्र के जल को पीना चाहिए जिससे रात्रि में ही । रख लेना चाहिए।
*दोपहर के भोजन में मट्ठे का सेवन करना चाहिए मट्ठे में सेंधा नमक भुनी हुई हींग एवं जीरा देना हितकर होता है।
*मला अवरोध में प्रातः काल खाली पेट दो सेब खाने चाहिए तथा भोजन करने के 2 घंटे पश्चात इच्छा अनुसार पानी पी सकते हैं। पानी को सैदेव घुट घुट पीकर उसका स्वाद महसूस करते हुए पीना चाहिए।
*एलोवेरा जूस में फाइबर, एंजाइम्स और एंटीऑक्सिडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं, जो पाचन प्रक्रिया को सुधारते हैं. इसके अलावा यह लैक्सेटिव की तरह असर करता है जिससे कब्ज के मरीजों को शौच के दौरान ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़ता है. तीन से चार छोटी चम्मच एलोवेरा जूस में उतनी ही मात्रा में पानी मिलाएं और सुबह खाली पेट इसका सेवन करें।
5.प्राकृतिक चिकित्सा ।
*अजीर्ण के रोग में रात भर के लिए पेट के ऊपर गीली पानी की पट्टी रखें इससे अजीब के रोग में अत्यंत लाभ मिलता है।
योगिक क्रियाएं जल नेति, सूत्र नेति,आदि षट कर्मों के बाद सात- आठ दिनों तक लगातार नीम के उबले पत्तों का एनिमा ले लेना चाहिए।
*भोजन से एक घंटा पहले एक गिलास ठंडा जल में एक कागजी नींबू का रस डालकर पीना चाहिए।
* 5 मिनट तक गर्म पानी में कटी स्नान करने के बाद 3 मिनट तक ठंडे पानी में कटि स्नान लेना चाहिए।
* प्रतिदिन नीली बोतल का सूर्य तृप्त जल की 50 ग्राम ही मात्रा पीने से लाभ मिलता है।
*कटोरी थपकी मालिश से अजीर्ण रोगियों को चमत्कारी लाभ मिलता है।
5.योगिक चिकित्सा :-
* षट कर्मों में कुंजर, नेति, धोती और नौलि क्रिया अजीर्ण रोग हेतु अति लाभकारी है।
* अजीर्ण के रोगियों को शक्तिसंचालन के अभ्यासो को करना चाहिए। जैसे चक्कीचालन, उत्तान पाद आसान, पवनमुक्तासन, नोकासन , शलभ आसन, हल आसान आदि।
*प्राणायाम में स्वास – प्रस्वासं तथा अनुलोम – विलोम अत्यधिक लाभकारी है।
प्रार्थना:- जब हम प्रार्थना करते हैं तो सकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं। हमारे अंदर की नकारात्मकता दूर होती है। प्रार्थना के माध्यम से हारमोंस एवं एंजाइम संतुलित होते हैं । तथा पाचन क्रियाशील हो जाता है संपूर्ण शरीर स्वस्थ होता है और अजीर्ण जैसे घातक रोग से मुक्ति पाने मे सफलता मिल जाती है ।
इति